इस दिन श्री नन्दकेश्वर की सवारी के साथ बड़े छोटे हजारो स्थानीय नागरिक अलग-अलग टोलियों में होली के गीत गाते हुए नाचते हुए मेला की शोभा बढ़ाते है। स्थानीय नागरिको के साथ ही आस पास के ग्रामीण भी अपने अपने ढोल लेकर नाचते गाते मेले का आन्द चौगुना करते हैं वहीं अनेक युवा, बुजुर्ग अनेक प्रकार की विचित्र मनमोहक रूप धारण कर झांकियों की प्रस्तुती से जनता का मन मोहते हुए भरपूर मनोरंजन भी करते है। धुलण्डी के दिन मुख्य मेले के विभिन्न केन्द्र बिन्दु यथा मेला प्रारम्भ स्थल श्री सूर्यनारायण मन्दिर, छोटा बाजार, मालियों का चौक, किला, पीर का कुआ, हथाई, धानमण्डी, लम्बीगली, लालबाबा का अखाड़ा पर श्री नन्दकेश्वर की सवारी के अलौकीक रूप के दर्शन तथा नृत्य देखकर जनसमूह अभिभूत हो जाता है।मेले की वापसी में छोटे बाजार में मेला विसर्जन से पूर्व का माहौल मस्तीभरा होता है, लोग नाच-गाकर मेले का आनन्द उठाते है। मेले की समाप्ति महा आरती से होती है
पूरी सांभर नगरी इस दिन विभिन्न रंगो की गुलाल से अटी रहती है। इस मेले मे सभी वर्ग के लोग बिना जातिगत अथवा अन्य किसी भी भेदभाव के मिलजुलकर भाग लेते है तथा सामाजिक सौहार्द का परिचय देते है।
फाल्गुन शुक्ल की त्रयोदशी एवं चतुर्दशी के दिन भी नगर में विभिन्न कार्यक्रम होते हैं जिनमे लोक गायन एवं लोक संस्कृति की सुन्दर झलक दिखाई देती है। तमाशा प्रारम्भ होने से पूर्व दानी भवानी एवं शिवशंकर के रूप की वन्दना की जाती है फाल्गुन शुक्ल नवमी के दिन भगवान शिव का स्वरूप (छोटा नांदया) छोटे बाजार स्थिथत मेला उद्गम स्थल से सांयकाल निकाला जाता है, जो निश्वित मार्ग होते हुए कटला बाजार तक जाकर पुनः मेला उद्गम स्थल पर लौटता है। चैत्र कृष्ण एकम के दिन दोपहर में देवी देवताओं के आवाहन के पश्चात् भगवान शिव स्वरूप श्री नन्दकेश्वर (नांद्या बाबा) की सवारी छोटा बाजार स्थित मेला उद्गम स्थल से प्रथम दर्शन के साथ भव्य आरती उपरान्त निश्चित मार्ग होते हुए प्रस्थान करती है। दिनभर नगर भ्रमण उपरान्त सवारी वापसी मेला प्रारम्भ स्थल पर आ पहुंचती हैं जहां दिन भर मे परवान चढ़ती होली की मस्ती मेला विसर्जन के समय देखते ही बनती है।