इस दिन श्री नन्दकेश्वर की सवारी के साथ बड़े छोटे हजारो स्थानीय नागरिक अलग-अलग टोलियों में होली के गीत गाते हुए नाचते हुए मेला की शोभा बढ़ाते है। स्थानीय नागरिको के साथ ही आस पास के ग्रामीण भी अपने अपने ढोल लेकर नाचते गाते मेले का आन्द चौगुना करते हैं वहीं अनेक युवा, बुजुर्ग अनेक प्रकार की विचित्र मनमोहक रूप धारण कर झांकियों की प्रस्तुती से जनता का मन मोहते हुए भरपूर मनोरंजन भी करते है। धुलण्डी के दिन मुख्य मेले के विभिन्न केन्द्र बिन्दु यथा मेला प्रारम्भ स्थल श्री सूर्यनारायण मन्दिर, छोटा बाजार, मालियों का चौक, किला, पीर का कुआ, हथाई, धानमण्डी, लम्बीगली, लालबाबा का अखाड़ा पर श्री नन्दकेश्वर की सवारी के अलौकीक रूप के दर्शन तथा नृत्य देखकर जनसमूह अभिभूत हो जाता है।मेले की वापसी में छोटे बाजार में मेला विसर्जन से पूर्व का माहौल मस्तीभरा होता है, लोग नाच-गाकर मेले का आनन्द उठाते है। मेले की समाप्ति महा आरती से होती है
राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 75 कि.मि. दूर पश्चिम मे स्थित सांभर झील नामक नगर यहां झील के मध्य स्थित शक्तिपीठ मॉ शाकम्भरी का वरदान एवं भारत के अन्तिम हिन्दू सम्राट श्रीमान पृथ्वीराज चौहान की तत्कालीन राजधानी के रूप मे विश्वविख्यात हुआ। सांभर की खारे पानी की झील जहां एशिया की सबसे बड़ी लवणीय प्राकृतिक झील है, वहीं सांभर नगर एवं मां शाकम्भरी और देवयानी सरोवर की महत्ता धार्मिक, पौराणिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक एवं राजनैतिक सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। इसी के साथ एक और अति महत्वपूर्ण विषय जो सांभर की पारम्परिक, सांस्कृतिक विरासत का सिरमौर है वह है श्री नन्दकेश्वर मेला !
आईए जाने इतिहास के गर्भ से इस अनूठी परम्परा के कुछ अनछुए पहलू जयपुर राज्य पुस्तक भण्डार (पोथीखाना) में उपलब्ध एक पुस्तक “चौहानो के राज्य वंश का विवरण” के अनुसार संवत 600 मे गोगजी नामक राजा हुए, जिन्होने अपने शासनकाल के क्षेत्र की भीषण कष्ट-पीड़ा के निवारण हेतु देवी की कठोर आराधना की, तब देवी ने प्रसन्न होकर राजा गोगजी को दर्शन दके र भगवान शंकर की आराधना की प्रेरणा दी। तदुपरान्त राजा ने एक सफेद नन्दी पर भगवान शिव का रूप का श्रृंगार कर होली पूजन के उपरान्त पूरे नगर की यात्रा कर अपनी प्रजा को नन्दी पर सवार भगवान शिव के दर्शन कराए। कुछ ही समय में प्रजा के सभी क्लरेश नष्ट होकर सुख समृद्धि की वृद्धि होने लगी। जिसके उपरान्त प्रतिवर्ष राजा गोगजी के समयकाल से ही अनवरत आज दिन तक नन्दी पर भगवान शिव के रूप मे धुलण्डी के दिन प्रतिवर्ष भगवान श्री नन्दीकेश्वर ( नन्दी पर आसीन भगवान शिव की सवारी) की धैर (चलित मेला-यात्रा) के रूप में आयोजित होने लगा।
श्री नन्दकेश्वर मेला महोत्सव का आगाज बसंत पंचमी से शुरू हो जाता है तत्पश्चात् महाशिवरात्रि के दिन मेला प्रारम्भ स्थल से सांभर स्थित रामबाग के मन्दिर तक “गैर “निकाली जाती है गैर मे सम्मिलित सभी लोग चंग, ढोलक, झांझ, मजीरो के साथ विभिन्न देवताओं का आवाहन करने रामबाग, सांभर जाते है।
इसी दिन रामबाग परिसर मे होली धमाल, लावणियों का लोक शैली में गायन होता है।